Friday, April 1, 2016

खेलपूर्ण होना

खेलपूर्ण होना

गंभीरता बीमारी है, यह उपाय नहीं है। यह मृत्यु तक ले जाती है, न कि अनंत जीवन तक। जीवन खेलपूर्णता, मजा है, क्योंकि सारा अस्तित्व एक विशाल सर्कस है। यह सब आमोद-प्रमोद है--रंग-बिरंगे फूल, इतने सारे सुंदर जानवर, पक्षी, बादल, और बिना किसी प्रयोजन के; उनके होने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है। जीवन स्वयं में खेल है। यह अनंत ऊर्जा है, अतिप्रवाहित ऊर्जा--अस्तित्व फैलता चला जाता है। किसी परमात्मा ने इसे नहीं बनाया है, क्योंकि जहां कहीं किसी चीज का निर्माण होता है उसका प्रयोजन होता है। जहां कभी कुछ भी किसी कारण से बनाया जाता है, और जब कोई बनाता है, बनायी गई चीज और कुछ नहीं बस मशीन ही होगी। अस्तित्व का ऐसा कोई उपयोग नहीं है, यह अनंत तक बना रहता है, ऊर्जा के अनेकानेक रूपों को अनंत खेल। 

मस्ती बहुत ही पावन शब्द है, प्रार्थना से अधिक पावन। यह एक मात्र शब्द है जो तुम्हें खेलपूर्ण होने का भाव देता है, जो तुम्हें फिर से बच्चा बना देता है। तुम फिर से तितलियों के पीछे भागने लगते हो, समुद्र किनारे सीपियां, रंगीन पत्थर बीनते हो। 

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