Thursday, May 5, 2016

दुख

यदि तुम पलायन न करो, यदि तुम दुख को मौजूद होने दो, यदि तुम उससे आमना-सामना करने को तैयार हो, यदि तुम किसी तरह से उसे भूल जाने का प्रयास नहीं कर रहे हो, तब तुम अलग ही व्यक्ति हो। दुखहै तो, पर बस तुम्हारे आसपास; यह केंद्र में नहींहै, वह परिधि परहै। दुख के लिए केंद्र पर होना असंभवहै; ऐसा वस्तु का स्वभाव नहींहै। यह हमेशा परिधि परहै और तुम केंद्र पर हो। 


तो जब तुम उसे होने देते हो, तुम पलायन नहीं करते, तुम भागते नहीं, तुम भयग"स्त नहीं होते, अचानक तुम इस बात के प्रति सजग होते हो कि दुख परिधि परहै जैसे कि कहीं और घट रहाहै, न कि तुम्हारे साथ, और तुम उसे देख रहे हो। तुम्हारे सारे अंतरतम पर एक सूक्ष्म आनंद फैल जाताहै क्योंकि तुमने जीवन का एक मौलिक सत्य पहचान लिया कि तुम आनंद हो, न कि दुख। 


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