Thursday, May 5, 2016

क्रोध

जब तुम किसी के लिए क्रोधित हो और तुम अपना क्रोध उस पर डालते हो, तुम प्रतिक्रिया की चेन पैदा करते हो। अब वह क्रोधित होगा। यह हो सकता है कि जन्मों तक चलता रहे और तुम दुश्मन बने रह सकते हो। तुम इसका अंत कैसे कर सकते हो? यहां सिर्फ एक ही संभावना है। तुम इसका सिर्फ ध्यान में अंत कर सकते हो, और कहीं नहीं, क्योंकि ध्यान में तुम किसी पर क्रोधित नहीं हो । तुम बस क्रोधित हो। 


भेद बुनियादी है। तुम किसी के ऊपर क्रोधित नहीं हो। तुम बस क्रोधित हो और क्रोध ब्रह्मांड में मुक्त होता है। तुम किसी के लिए नफरत से नहीं भरे हो, तुम बस नफरत से भरे हो और वह बाहर फेंक रहे हो। ध्यान में, भावनाएं किसी के लिए नहीं है। वे किसी के लिए नहीं है। वे ब्रह्मांड में चली जाती है, और ब्रह्मांड हर चीज को शुद्ध कर देता है।

यह ऐसे ही जैसे कि गंदी नदी समुद्र में गिरती है : समुद्र उसे शुद्ध कर देगा। जब कभी तुम्हारा क्रोध, तुम्हारी नफरत, तुम्हारी कामुकता, ब्रह्मांड में जाती है, समुद्र में जाती है--यह शुद्ध हो जाती है। यदि गंदी नदी किसी दूसरी नदी में गिरती है, तब दूसरी नदी भी गंदी हो जाती है। जब तुम किसी के ऊपर क्रोधित हो, तुम अपने कचरे को उस पर फेंक रहे हो। तब वह अपना कचरा तुम्हारे ऊपर फेंकेगा और तुम कचरा फेंकने की संयुक्त प्रक्रिया हो जाओगे ।

ध्यान तुम स्वयं को ब्रह्मांड में शुद्ध होने के लिए फेंक रहे हो। सारी ऊर्जा जो तुम ब्रह्मांड में फेंकते हो वह शुद्ध हो जाती है। ब्रह्मांड बहुत विशाल है महान समुद्र, तुम उसे गंदा नहीं कर सकते। ध्यान में हम किसी व्यक्ति से नहीं जुड़े हैं। ध्यान में हम सीधे ब्रह्मांड से जुड़ते हैं।

तादात्म्य नहीं

इसे अपनी कुंजी बन जाने दो--अगली बार जब क्रोध आए, बस उसे देखो। मत कहो, "मैं क्रोधित हूं।' कहा, "क्रोध यहां है और मैं उसका दृष्टा हूं।' और फर्क देखना! फर्क बहुत बड़ा होगा। अचानक तुम क्रोध की पकड़ से बाहर हो गए। यदि तुम कह सको, "मैं बस देखने वाला हूं, मैं क्रोध नहीं हूं,' तुम उसकी पकड़ से बाहर हो गए। जब उदासी आए, बस एक तरफ बैठ जाओ और कहो, "मैं देखने वाला हूं, मैं उदासी नहीं हूं,' और फर्क देखना। तत्काल तुमने उदासी की जड़ काट दी। वह और अधिक पोषित नहीं हो रही। वह भूख से मर जाएगी। हम इन विभिन्न भावनाओं से तादात्म्य बना कर पोषित करते हैं।

यदि धार्मिकता को एक अकेली बात में सिकोड़ा जा सके, तो वह है तादात्म्य का न होना। 

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